कोरोना महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। लड़कियों की स्कूली शिक्षा को लेकर हुए नए अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अध्ययन के मुताबिक ऐसा माना जा रहा है कि सेकंडरी स्कूल में पढ़ने वाली दुनियाभर की दो करोड़ लड़कियां अब कभी स्कूल ही ना जा पाएं।
भारत के पांच राज्यों में भी अध्ययन
एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, कम और मध्यम आयवर्ग के देशों के सेकेंडरी स्कूल में पढ़ रही लगभग दो करोड़ लड़कियां कोरोना खत्म होने के बाद कभी स्कूल नहीं लौट सकेंगी। ‘राइट टू एजुकेशन फोरम’ ने ‘सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज’ और ‘चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन’ के साथ मिलकर भारत के भी पांच राज्यों में ये स्टडी की है।
‘लाइफ इन द टाइम ऑफ कोविड-19: मैपिंग द इंपैक्ट ऑफ कोविड-19 ऑन द लाइव्स एंड एजुकेशन ऑफ चिल्ड्रन इन इंडिया’ नाम से हुई इस स्टडी की रिपोर्ट 26 नवंबर को जारी की गई। इसमें यूनिसेफ के एजुकेशन प्रमुख टेरी डर्नियन और बिहार स्टेट कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स की अध्यक्ष प्रमिला कुमारी प्रजापति ने स्टडी में उठाए गए मुद्दे पर चिंता जताई है।
3,176 परिवारों का अध्ययन
यह शोध जून 2020 में किया गया था और इसमें उत्तर प्रदेश के 11 जिलों, बिहार के आठ जिलों, असम के पांच जिलों, तेलंगाना के चार जिलों और दिल्ली के एक जिले को शामिल किया गया। कमजोर और गरीब तबके के परिवारों में से 70 फीसदी ने माना कि उनके पास खाने को पर्याप्त राशन नहीं है। ऐसे में लड़कियों की पढ़ाई सबसे ज्यादा खतरे में है।
37 फीसदी लड़कियां शायद स्कूल नहीं लौट पाएंगी
इस अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि 37 फीसदी लड़कियां इस बात पर निश्चित नहीं हैं कि वो कभी स्कूल लौट पाएंगी। अध्ययन में 37 फीसदी लड़कों और 27 फीसदी लड़कियों ने माना कि उन्हें पढ़ाई करने के लिए फोन मिल पाता है। इस अध्ययन में शामिल कुल परिवारों में से 52 फीसदी परिवारों के पास टीवी सेट था, लेकिन केवल 11 फीसदी बच्चों ने टीवी पर पढ़ाई से संबंधित प्रोग्राम देखने की बात कही।
चार साल भी नहीं पढ़ पाती लड़कियां
वैसे राइट टू एजुकेशन (RTE) यानी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत छह से 14 साल तक की आयु के बच्चों के लिए पहली से आठवीं कक्षा तक की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। स्कूल के इन 8 सालों में से लड़कियां चार साल भी पूरे नहीं कर पाती हैं। ये काफी दुखद है कि इन आठ अनिवार्य सालों में से लड़कियां स्कूली शिक्षा के चार साल भी ठीक से पूरा नहीं कर पाती हैं।
71 फीसदी लड़कियां घरेलू कामों में व्यस्त
तकरीबन 71 फीसदी लड़कियों ने माना कि कोरोना फैलने के बाद से वे घर पर हैं और पढ़ाई के समय में भी घरेलू कामों में व्यस्त रहती हैं। वहीं लड़कियों की तुलना में केवल 38 फीसदी लड़कों ने बताया कि उन्हें घरेलू या देखरेख के काम करने को कहे जाते हैं।
बढ़ सकता है जल्दी शादी का खतरा
महामारी खत्म होने के बाद अगर लड़कियां स्कूल न लौट सकें, तो उनकी जल्दी शादी के खतरे भी बढ़ सकते हैं। ऐसा ही असर दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी देखा गया, जैसे अफ्रीका में इबोला महामारी के दौरान किशोरियों की जल्दी शादी हो गई और स्कूल से नाता पूरी तरह से छूट गया।
पर्याप्त वित्तीय सहायता दे सरकार
स्टडी में इस बात पर जोर दिया गया कि बच्चों और विशेषकर लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार पर्याप्त वित्तीय सहायता दे। आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अंबरीश राय ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में निवेश बढ़ाते हुए नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के तहत जीडीपी का छह फीसदी शिक्षा में लगाने का लक्ष्य तय किया गया।